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24 :14 का दर्शन

24 :14 का दर्शन

– स्टेन पार्क्स

मत्ती 24:14 में यीशु ने प्रतिज्ञा किया था “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जायेगा कि सब जातियों ( सब लोगों ) पर गवाही हो तब अंत आयेगा |”

24:14 का दर्शन यह  है कि हमारी पीढ़ी में  सुसमाचार पृथ्वी पर के हर वर्ग से बाँटा जाए | जो यीशु ने शुरू किया और अन्य ईमानदार कार्यकरने वाले लोग जो हमारे पहले इसके लिए जीवन को दिए हम उस पीढ़ी में रहना चाहते है  | जब तक कि हर समूह के लोग सुसमाचार का प्रतिउत्तर न दे  और उसकी दुल्हन न बने तब तक हम जानते हैं कि यीशु लौटने का इंतजार कर रहे है |   

हम इस मौके को प्रत्येक लोगों के समूह को देने का सबसे अच्छा तरीका पहचानते हैं ताकि कलीसिया आरम्भ हो  और अपने समूह में बहुगुणित हो सके  – सुसमाचार सुनने के लिए यह सभी के लिए सबसे अच्छी आशा है  , क्योंकि इन बहुगुणित कलीसियाओं के चेले हर किसी के साथ सुसमाचार साझा करने के लिए प्रेरित होते हैं ।

ये बहुगुणित कलीसियाएं वे बन सकती हैं जिन्हें हम कलीसिया रोपण आन्दोलन (सीपीएम) कहते हैं | सीपीएम की परिभाषा  चेले बनाकर चेलों को बहुगुणित करना और अगुवे अगुवों की उन्नति करना है , जिसके परिणाम स्वरूप स्वदेशी कलीसियायें कलीसियाओं का रोपण कर रही हैं जो लोगों के समूह या जनसंख्या खंड के माध्यम से तेजी से फैल रही  हैं ।

24:14 का गठबंधन कोई संस्था नहीं है | हम व्यक्तियों, दलों, कलीसियाओं, संस्थाओं, नेटवर्क और आंदोलनों का एक समुदाय हैं, जिन्होंने हर न पहुँचे हुए स्थान और लोगों में कलीसियाओं को रोपण करने का प्रण लिया है | हमारा प्रारंभिक लक्ष्य प्रभावशाली रीती से सीपीएम के  माध्यम से दिसम्बर 31, 2025 तक प्रत्येक न पहुँचे हुए लोगों और स्थान तक पहुँचना है | 

इसका मतलब एक समूह का उस स्थान पर  होना ( जो स्थानीय, विशेषज्ञ या दोनों  ) जो उस तिथि तक उस आन्दोलन की रणनीति पर सुसज्जित हो जो न पहुचे हुए लोगों और स्थान तक  के लिए है  | हम इसका कोई दावा नहीं करते हैं कि कब महान आज्ञा का कार्य पूरा होगा। वह परमेश्वर की जिम्मेदारी है । वह आंदोलनों के फलों को निर्धारित करता है ।

हम 24:14 के  दर्शन का पीछा चार मूल्यों पर आधारित होकर करते हैं :

  1. मत्ती 24:14 के अनुसार न पहुँचे हुए लोगों के बीच पहुँचना: परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रत्येक न पहुँचे हुए लोगों के बीच तथा स्थान में लेकर जाना |  
  2. इसे कलीसिया रोपण आन्दोलन के द्धारा पूरा करना, तथा इसमें बहुगुणित करनेवाले चेलों, कलीसियाओं, अगुवों तथा आंदोलनों को शामिल करना है | 
  3. युद्ध के समय की अनिवार्यता की भूमिका के समान कार्य करना जिससे 2025 के अन्त तक प्रत्येक न पहुँचे हुए लोगों तथा स्थान में आन्दोलन के रणनीति के साथ पहुँचा जाये |
  4. इन कामों को दूसरों के सहयोग से करना  ।

हमारा दर्शन ये है की हमारे जीवनकाल में राज्य का यह सुसमाचार सभी लोगों के समूहों के लिए एक गवाही के रूप में सम्पूर्ण संसार में प्रचार होता हुआ देखे । हम आपको आमंत्रित करते है की हमारे साथ प्रार्थना और सेवा में जुड़े ताकि राज्य के  आन्दोलन को हर न पहुचे हुए लोगों और स्थान में शुरू कर सके ।

 

 

स्टेन पार्क पीएचडी 24:14 गठबंधन (सुविधा टीम), परे (वीपी वैश्विक रणनीतियों), और Ethne (नेतृत्व टीम) में कार्य करता है । वह विश्व स्तर पर सीपीएम की एक किस्म के लिए एक ट्रेनर और कोच है और रहते है और १९९४ के बाद से पहुंच के बीच सेवा की ।

यह सामग्री पहली बार 24:14 पुस्तक के पृष्ठ 2-3 पर छपी – सभी लोगों के लिए एक गवाही, 24:14 से या अमेज़न से उपलब्धहै।

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क्रूर तथ्य

क्रूर तथ्य

– जस्टिन लॉन्ग –

यीशु के स्वर्गारोहण के पहले, उसने चेलों को एक काम दिया जिसे हम महान आज्ञा कहते हैं: “सारे संसार में जाए ,” और लोगों के हर समूह को चेला बनाए | तब से लेकर, विश्वासी इस बात की कल्पना करते हैं कि वह दिन कब आयेगा जब यह कार्य पूरा होगा| हम में से कई लोग इसे मत्ती 24:14 से जोड़ते हैं, जहाँ यीशु ने वादा किया कि यह सुसमाचार “सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा|” हम इस वाक्यांश के सटीक अर्थ के बारे में बहस कर सकते हैं, हम सोच सकते हैं कि काम पूरा हुआ है और यह पूरा होना किसी न किसी तरह से अन्त से जुड़ा हुआ है|

इस बीच हम मसीह के लौटने का उत्साह के साथ आशा रखते है , पर हमें “निर्दयी तथ्य” का सामना करना जरुरी है : यदि कार्य  का अन्त और यीशु का लौटना किसी तरह से आपस में जुड़ा हुआ है, तो उसका लौटना अभी बहुत दूर है| कई मापदंडों से “कार्य का अन्त” हमसे बहुत दूर होता जा रहा है|   

“कार्य  का अन्त” हम कैसे माप सकते हैं ? दो संभावनायें इन वचनों से जुडी हैं: घोषणा का माप और शिष्यता का माप |  

शिष्यता के माप के रूप में , हम दोनों का विचार कर सकते है , की संसार विश्वासी होने का कितना दावा करता है  और संसार सक्रीय चेले के रूप में कितना गिना जा सकता है |   

दा सेंटर फॉर दा स्टडी ऑफ़ ग्लोबल क्रिश्चियनिटी (CSGC)  सब प्रकार के विश्वासियों को इसमें गिनता है | वे हमें बताते हैं कि सन 1900 में, संसार में 33% विश्वासी  थे ; सन 2000 में 33% संसार विश्वासी था  | और सन  2050 तक, जब तक चीजें नाटकीय ढंग से न बदले , तब भी संसार में 33%  विश्वासी ही होंगे | एक कलीसिया सुसमाचार को “सम्पूर्ण संसार में सभी लोगों की गवाही” के लिए नहीं ले जा रही है अगर वो जनसंख्या के आधार पर बढ़ रही है  |  

“सक्रिय चेलों” के बारे में क्या ? यह माप बहुत ही कठिन है, क्योंकि हम असल में  “ह्रदय के स्थिति को नहीं जानते हैं | परन्तु द फ्यूचर ऑफ़ दा ग्लोबल चर्च, में पैट्रिक जॉनस्टोन ने अनुमान लगाया है कि 2010 में  इवैंजेलिकलस की जनसंख्या संसार में  6.9%  थी | खोज दिखाते हैं कि इवैंजेलिकलस की संख्या विश्वासियों  के दूसरे भागों की अपेक्षा तेजी से बढ़ रहे हैं, परन्तु यह संसार का एक छोटा सा प्रतिशत ही रहेगा |    

विश्वासियों की संख्या कार्य को पूरा करने का एकमात्र माप नहीं है | फिर भी “घोषणा करना” उपरी नोट के अनुसार यह अन्य  माप है | कुछ लोग सुसमाचार सुनेंगे और उसे स्वीकार नहीं करेंगे| घोषणा के तीन माप विस्तार से इस्तेमाल किये जाते हैं: सुसमाचार न सुनाये गए, न पहुँचे गए, और शामिल नहीं किए गए  (मिशन फ्रंटियर्स ने इन तीन मापों को जनवरी-फरवरी 2007 अंक में विस्तार से देखा है

सुसमाचार न सुनाये गए  यह किन लोगों तक सुसमाचार नहीं पहुँचा है इसे मापने का प्रयास है : वास्तविक रूप में जिनके पास सुसमाचार सुनने और उसका प्रतिउत्तर देने का उनके जीवन भर में मौका नहीं मिला  | CSGC का अनुमान है कि 1900 तक संसार के 54% भाग में सुसमाचार नहीं सुनाया गया था और आज 28% भाग में सुसमाचार नहीं सुनाया गया है | यह अच्छी   खबर है: संसार में सुसमाचार नहीं पहुँचा है उसका प्रतिशत काफी कम हुआ है | फिरभी , बुरी खबर रह  है: 1900 तक, सुसमाचार न सुने हुए लोगों की जनसंख्या 88 करोड़ थी | आज, यह जनसंख्या वृद्धि के कारण यह संख्या 2.1 अरब हो गई है|

जबकि सुसमाचार न सुनाये गए हुए लोगों का प्रतिशत लगभग आधा हुआ है , जिनके पास  सुनने का मौका नहीं था ऐसे लोगों कि संख्या दोगुणी हो गाई है | शेष कार्य  भी आकार में बढ़ गया है |

न पहुँचे हुए  थोड़े भिन्न हैं:  यह मापती है सुसमाचार न सुनाये गए समूहों को  जिसमे एक स्थानीय, स्वदेशी कलीसिया नहीं है जो सम्पूर्ण समूह में सुसमाचार पहुँचा सकती है बिना दूसरे संस्कृति के मिशनरियों की मदद के  | जोशुआ प्रोजेक्ट ने अनुमानत: 7,000 न पहुँचें हुए समूहों की सूची बनायी है जिनकी जनसंख्या 3.15 अरब है जो संसार का 42% भाग है|    

अंततः , शामिल न किए गए  वह समूह हैं जहाँ कोई भी कलीसिया रोपण का दल किसी भी तरह के काम में शामिल नहीं है | आज, 1,510 ऐसे समूह हैं: 1999 में जब IMB ने इसका परिचय किया तब से इसकी संख्या में निरंतरगिरावट हो रही है| यह गिरावट  अच्छा चिन्ह है, परन्तु “नये शामिल हुए” समूहों के लिए इसका अर्थ है कि कार्य अभी समाप्त नहीं हुआ है, केवल नया आरम्भ हुआ है | कलीसिया रोपण दल के साथ एक समूह में शामिल करना स्थाई परिणामों को देखने की अपेक्षा आसान है |

“क्रूर तथ्य” यह है कि, इनमें से कोई भी माप, हमारे पासके मौजूद प्रयास, सभी समूहों के सभी लोगों तक जल्दी नहीं पहुँच सकते हैं | हम इसके  कई मुख्य कारणों को देख सकते हैं|  

पहला , अधिकतर ईसाईयों का  प्रयास वही तक होता हैं जहाँ कलीसिया है ,न होने वाले स्थानों की अपेक्षा में | अधिकतर धन जो ईसाई कामों के लिए दिया गया स्वंय पर इस्तेमाल कर देते हैं और अधिकतर मिशन के धन का इस्तेमाल ईसाई बहुल क्षेत्रों में किया जाता है | क्योंकि हरएक $100,000 की व्यक्तिगत कमाई में , ईसाई औसत $1 डॉलर देता है न पहुँचे गए स्थानों में पहुँचने के लिए (0.00001%) | 

व्यक्तिगत तैनाती भी इस समस्यात्मक असंतुलन को प्रगट करती है | केवल 3% अन्य संस्कृति के मिशनरीज न पहुँचे हुए लोगों के बीच सेवा करते हैं | यदि हम सभी पूर्णकालिक मिशन कार्य  करनेवालों को गिनते हैं तो यह केवल 0.37% है जो न पहुँचें हुए लोगों के बीच सेवा करते हैं | हम हर 179,000 हिन्दुओं, 260,000 बौद्ध, और 405,500 मुसलमानों के लिए एक मिशनरी को भेज रहे हैं |

दूसरा, अधिकतर विश्वासी गैर-विश्वासी संसार के संपर्क में नहीं रहते हैं: वैश्विक स्तर पर 81% गैर-विश्वासी व्यक्तिगत रीति से किसी विश्वासी को नहीं जानते हैं | मुसलमानों, हिन्दुओं, और बौद्धिस्टों में यह 86% बढ़ता है | मध्य-पूर्वी और उत्तरी अफ्रीका में इसका प्रतिशत 90% है | तुर्की और ईरान में यह 93% है और अफगानिस्तान में 97% लोग व्यक्तिगत रूप से किसी विश्वासी  को नहीं जानते हैं | 

तीसरा, कलिसियायें उन्हीं स्थानों में बनी हुई  हैं जहाँ जनसंख्या वृद्धि धीमी है | वैश्विक जनसंख्या वहाँ पर बहुत तेजी से बढ़ रही है जहाँ हम (विश्वासी ) नहीं हैं | 1910 से लेकर 2010 तक ईसाईयों की वैश्विक जनसंख्या में 33% पर ही है | इसी बीच इस्लाम 1910 में 12.6%  से लेकर 1970 में 15.6% पर पहुँच गया है और सन  2020 तक यह 23.9% हो जाने का अनुमान लगाया जा रहा है | यह मुस्लिम समुदायों में जनसंख्या वृद्धि के कारण हो रहा है, न कि धर्मान्तरण के कारण | लेकिन सच्चाई  यह  है कि पिछले सदी में इस्लाम संसार के प्रतिशत दोगुना हुआ है और विश्वासियों का प्रतिशत वही थम गया है |

चौंथा, महान आज्ञा को पूरा करने के लिए एकता में कार्य करने के अभाव के कारन विश्वासी जगत खंडित हुआ है  | वैश्विक स्तर पर, अनुमानत: 41,000 फिरके हैं | मिशन एजेंसीज की संख्या सन 1900 में 600 से बड़कर आज 5,400 हो गई है | सामान्यतः बातचीत का आभाव, समन्वय की कमी का होना ,ये सभी जाति के लोगों को चेला बनाने के प्रयास को पंगु बना रहा है |

पाँचवां, कई कलीसियायें चेला बनाने, मसीह का आज्ञापालन करने, और सम्पूर्ण ह्रदय से उसका अनुसरण करने पर अपर्याप्त महत्व देती हैं | कम समर्पण थोड़ा फल ही लाता है और समाप्त होने या फटने के खतरे की स्थिति में होता है | यह विश्वासियों के हानी को दिखाता है  जो कलीसिया को छोड़ देते हैं | हर वर्ष औसतन 50 लाख लोग विश्वासी बनने का चुनाव करते हैं, परन्तु 1 करोड़ 30 लाख लोग ईसाइयत छोड़ देते हैं | यदि यही प्रवृत्ति जारी रही तो 2010-2050 के बीच 4 करोड़  लोग ईसाइयत से जुड़ेंगे जबकि 106 मिलियन लोग ईसाइयत को छोड़ चुके होंगे |

छठां, हमने रणनीतिक रूप से वैश्विक कलीसिया के वास्तविकता को अपनाया नहीं  है | ग्लोबल साउथ क्रिश्चियन 1910 में संसार के 20%  ईसाइयों से बढ़कर 2020 तक 64.7% तक बढ़ने का अनुमान है | फिर भी ग्लोबल नार्थ कलीसिया के पास ईसाइयत का सबसे बड़ा धन है | प्रजातिकेंद्रिकता और संकीर्ण दृष्टिकोण के कारण ,हम हमारे स्वंय के संस्कृति से मिशनरीज को भेजने पर प्राथमिकता देते हैं | हम हमारे अधिकतर स्रोतों का इस्तेमाल दूर के संस्कृति के दल को सहारा देने के लिए करते हैं जो न पहुँचें हुए समूह में काम कर रहे हैं, करीब के संस्कृति को प्राथमिकता और पर्याप्त रूप से संसाधन देते हैं, जिससे न पहुँचे हुए पड़ौसी लोगों तक पहुँचने का प्रयास करते हैं |   

सातवाँ, हम क्षेत्रों को खो रहे हैं | पिछले छ: बिन्दुओं और दूसरे कारणों  के परिणामस्वरूप, सामान्यतः खोये हुए लोगों की संख्या और विशेषकर न पहुँचे हुए लोगों की संख्या में दोनों में वृद्धि हो रही है| संसार में खोये हुए लोगों की संख्या 3.2 अरब से लेकर 2015 में 5 अरब तक पहुँच गई है , जबकि 1985 में जिनके पास सुसमाचार नहीं पहुँचा है 1.1 अरब से बढ़कर  2018 में 2.2 अरब हो गए हैं |    

महान आज्ञा को पूरा करने के हमारे उत्साही इच्छा के बावजूद, जब तक हम “जिस तरह दौड़” दौड़ रहे हैं उसे परिवर्तित नहीं करेंगे तो वर्तमान आँकड़े बताते हैं हम आनेवाले समय में समाप्त करने वाले लकीर को जल्द देखने की इच्छा नहीं कर सकते हैं | हम कभी भी संवर्द्धित रूप से खोये हुओं की दरार को भर नहीं सकते हैं | हमें इस क्रूर तथ्य का सामना करना है कि मिशंस और कलीसिया रोपण सामान्य रूप से  कभी भी इस लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकता है |  

हमें ऐसे आन्दोलनों की आवश्यकता है जहाँ नये विश्वासीयों की जनसंख्या वार्षिक दर से बढ़ते जाए | हमें ऐसी कलिसियायें चाहिए जो बहुगुणित कलिसियायें बनाये और आन्दोलन चाहिए जो बहुगुणित आन्दोलन को कर सके  न पहुचे हुओं तक | यह कोई स्वप्न या सिद्धांत मात्र नहीं है | परमेश्वर कुछ स्थानों में यह कर रहा है | कुल मिलकर 650 से भी ज्यादा  CPM है  (कम से कम चार भिन्न शाखायें निरंतर 4+ पीढ़ियों की कलिसियायें ) हैं जो हर महाद्विप में फैले हुए हैं | इसके आलावा दूसरे 250+ उभरनेवाले आन्दोलन हैं जो 2 और 3 पीढ़ी के बहुगुणित करने वाली कलीसियाओं को देख पा रही है |      

परमेश्वर जो कर रहा है उसकी ओर हमें ध्यान देना ही चाहिए और इच्छापूर्वक हमारे प्रयासों का वास्तविक मूल्यांकन करना चाहिए जिससे हम न्यूनतम फलवन्त रणनीति को उच्च फलवन्त में बदल सकें |

 

 

(1) [1] Â वर्ल्ड क्रिश्चियन डाटाबेस, २०१५, * बैरेट और जॉनसन । 2001. विश्व ईसाई रुझान, पी 656, और वैश्विक ईसाई धर्म 2009 के 2 एटलस. यह भी देखें: मिशनरियों की तैनाती, वैश्विक स्थिति 2018
(2) इबिड।
(3) http://www.gordonconwell.edu/ockenga/research/documents/ChristianityinitsGlobalContext.pdf
(4) http://www.ijfm.org/PDFs_IJFM/29_1_PDFs/IJFM_29_1-Johnson&Hickman.pdf
http://www.gordonconwell.edu/ockenga/research/documents/ChristianityinitsGlobalContext.pdf
5 http://www.ijfm.org/PDFs_IJFM/29_1_PDFs/IJFM_29_1-Johnson&Hickman.pdf
6 http://www.pewforum.org/2017/04/05/the-changing-global-religious-landscape/

जस्टिन लांग 25 साल के लिए वैश्विक मिशन अनुसंधान में शामिल किया गया है, और वर्तमान में परे है, जहां वह आंदोलन सूचकांक और वैश्विक जिला सर्वेक्षण संपादन के लिए वैश्विक अनुसंधान के निदेशक के रूप में कार्य करता है ।

यह सामग्री पुस्तक 24:14 के पृष्ठ 149-155 पर छपी24:14 या अमेज़ॅन से उपलब्ध सभी लोगों के लिए एक प्रमाण, एक लेख से विस्तारित हुई जो मूल रूप से मिशन फ्रंटियर्स, www.missionfrontiers.org, पीपी 14-16 केजनवरी-फरवरी 2018 के अंक में दिखाई दिया।

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सहयोग के लिए क्यों दे ?

सहयोग के लिए क्यों दे ?

– क्रिस मेकब्राइड के द्वारा –

संसार बदल रहा है , और नेटवर्क्स की ताकत परिपक्वता में आ रही है | सोशल नेटवर्क्स ने हमे अनगिनत उदाहरणों दिखाया है की जब बहुत से एकसाथ शामिल होते है दर्शन को पूरा करने के लिए तो क्या होता है |

24:14 दाताओं को मार्ग उपलब्ध कराता है की वो मसीह की देह में नेटवर्क्स में दे सके, ताकि एकसाथ मिलकर महान आज्ञा को पूरा करे | हमे आवश्यकता है सिर्फ इतना बोलने की “आओ एक साथ कार्य करे |” सहयोग के हालही के सफल उदाहरन हमे कुछ आवश्यक सामग्री को दिखाते है |

सहयोग के लिए स्पष्ट दर्शन  

24:14 का दर्शन हर वैश्विक स्थानों के  हर लोगों के समूह के लिए है की भरोसेमंद समुदाय हो जो बहुगुणित चेलों को बनाने पर केन्द्रित हो कलीसिया रोपण आन्दोलन में | स्पष्टता का ये स्तर संसार भर के विश्वासियों को अनुमति देता है की इस सामर्थी दर्शन में सहयोग करे |

सहयोग के लिए स्पष्ट तंत्र 

हमारा 24:14 का समुदाय एक दुसरे को सहायता करता है जानकारियों को बाटने , श्रोत , प्रशिक्षण , शिक्षा , सीखना और प्रोत्साहन के द्वारा | क्षेत्रीय और उप क्षेत्रीय टीम्स को सहयोग के लिए आयोजित मदत करके स्थानीय स्तर पर कार्य के लिए सक्षम करना | हमारा किसी भी संस्था की कार्यसूची या कार्यप्रणाली को उन्नत करने का लक्ष नहीं है | हम हमारे समुदाय में हर संस्था,कलीसिया ,टीम , आन्दोलन की सफलता को बढ़ावा देते है |

सहयोग के लिए मदत के संरचना को बनाना

सहयोग के प्रयासों के मध्य में सबसे बेहतरीन अभ्यास महत्वपूर्ण पाठ को फलाता है : सहयोग के लिए कठिन परिश्रम की आवश्यकता है | अधिकतर कलीसियाएं , नेटवर्क्स , संस्थाएं और आंदोलनों में उनकी कार्यसूची में बड़े सौदे होते है | अग्रणी सहयोग तृतीय पक्ष से समर्पित कार्य को लेती है : इस कल्पना को हम “ सहयोगी सहायता ” कहते है |

जब हम किसी व्यक्ति को पहली बार मिलते है तो हम उनके सहयोग को नहीं देखते है , परन्तु हम ध्यान देते है अगर उनके पास कोई नहीं है ! एक सहायता मदत की संरचना को उपलब्ध कराती है जो सम्पूर्ण देह को एकसाथ कार्य करने में मदत करती है | एक सहयोगी सहायता कार्य करती है प्रयासों के आयोजन के द्वारा जो कलीसियाओं , नेटवर्क्स , संस्थाओं और आंदलनो को एकता में एक ही लक्ष को रखने में अनुमति देती है |

सहयोग के लक्ष को परिभाषित करना 

24:14 के अगुवाई की टीम ने हमारे सहयोग को काम सौंपा है निम्न उद्देशों के द्वारा :

 

  • प्रार्थना और उपवास के लिए समर्पण को विस्तारित करना चेलों के बहुगुणित आन्दोलन के लिए |
  • शोधकर्ताओं की टीम को ज्यादा विकसित करना और डाटा को साँझा करना जो विश्वसनीय रीती से क्षेत्रीय स्तर तक के अंतर को पहचानती है | 
  • एक वैश्विक रणनीति की टीम को उन्नत करना 32 क्षेत्रों से , जो संचालित की जायेगी दस्तावेजों , मूल्यांकन और कार्य योजना पर उत्सव मनाने के लिए |
  • संचार को निरंतर प्रकाशित करना , जिसमे ब्लॉग , किताबे , सामान्य अनुच्छेद और सोशल मिडिया पोस्ट को शामिल करना है |
  • अनुभवी आन्दोलन के अगुवे की सहायता से चरणबद्धरीती से सुमदाय को तैयार करने की सहायता | 
  • आन्दोलन चिकित्सको के मध्य में और अधिक पार परागन की सहायता प्रदान करना |  
  • कलीसियाओं , संस्थाओं और देनेवाले गठबन्धनों को सलाह देकर महान आज्ञा की रिक्त परियोजना पर श्रोतों का  इस्तेमाल  करना |

 

हमारा ये मानना है की महान आज्ञा के चारों और सहयोग देना ये किसी भी विश्वासी के लिए सबसे बेहतर निवेश है | जब आप राज्य के देने के निवेश पर विचार करते है , कृपया प्रार्थना पूर्वक सहयोग को मदत करने पर विचार करे जो उद्देशित है कलीसिया रोपण आन्दोलन के साथ में हर स्थान और लोगों को शामिल करने में |

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क्षेत्रीय टीमों की शक्ति

क्षेत्रीय टीमों की शक्ति

– क्रिस मेकब्राइड के द्वारा –

अगर मै स्कूल में बहुगुणन की ताकत को न सीखता , तो शायद मै इसे कोविड – 19 से सीखता |

2020 पहले छमाही ने वो पाठ को दिखाया है जो कलीसिया रोपण आन्दोलन ने वर्षों से हमे दिखाया था : बहुगुणन क्षेत्र को वायरस से भरता है …..या राज्य के चेलों से , जिस रीती से जोड़ नहीं कर सकता है ! नेटवर्क समुदाय बहुगुणन के प्रभाव को डालता है क्यूंकि वे बहुगुणित अगुवों को यीशु की आज्ञा व्यक्तिगत रूप से मानने के लिए सशक्त करते है | जब आत्मा क्षेत्रीय अगुवों को उनके समुदाय जिन्हें वे जानते है ले जाती है नमूने के रूप में अगुवाई देने के लिए , संक्रमित प्रभाव जल्द ही होने लगता है | 

24:14 ये एक सहयोगी समुदाय है | हम एक साथ एक ही दर्शन की ओर कार्य करते है : हर लोगों के समूह और हर वैश्विक स्थानों को शामिल करते हुए बहुगुणित चेले बनाने और कलीसिया रोपण के साथ में | संसार के विविध लोगों और संस्कृतियों के बीच में हम इससे बेहतर और क्या कर सकते है ?

विगत सहयोगों के प्रयास अधिकतर असफल हुए क्यूंकि उन्होंने “कम सामान्य फिरके ” को कार्यान्वित करना चाहा सहयोग के लिए | कई लोगों ने विविध कार्यप्रणाली को करना चाहा उनके सहयोग में , और व्यापक दर्शन के आसपास की समावेशिता का अर्थ है की लक्ष व्यापक ही रहे | क्यूंकि लक्ष हमेशा वैश्विक और सामन्य रहे , सहभागियों को अर्थपूर्ण रीती से बड़े लक्ष में सहयोग देने के मार्ग को खोजना थोडा कठिन था |

24:14 के क्षेत्रीय दलों ने भूतकाल के अनुभवों से सिखा | ऐसे क्षेत्रीय दलों को बनाकर जो एक ही भाषा , संस्कृति , सुरक्षा , और प्रमुख धार्मिक पृष्ठभूमि के हो , दलों में बहुत से बातें सामन्य है विविध होने के बजाए | जब एक क्षेत्रीय दल अगुवे बनाने वाले चेलों के द्वारा बनाया जाता है ताकि कलीसिया रोपण आन्दोलन को आरम्भ कर सके , उनके पास सफलता का स्पष्ट मार्ग है | क्षेत्रीय दल सहयोग दे सकती है कलीसिया बहुगुणन में , रणनीतिक योजना में , प्रार्थना में और श्रोतों को साझा करने के इर्दगिर्द में | इस प्रकार से अन्य लोगों को इस मार्ग में चलने में उत्साह और मदद मिलती है | 

क्षेत्रीय दल एक वैश्विक दर्शन को कई क्षेत्रों में बहुगुणित होने के लिए अनुमति देते है | जब ये दल सफलता पूर्वक कार्य करते है , वे सहयोगी समुदाय को राष्ट्रिय स्तर तक , फिर प्रान्तों के स्तर तक , फिर जिल्हा स्तर तक  बनाने के लिए उत्साहित करते है | जैसे ही संबंध स्थापित होने लगते है और भरोसा बढ़ने लगता है , उर्जा बढ़ने लगती है , खोएं हुओं तक पहुचते है और दरार भरने लगती है | 

अगुवाई का दल हर क्षेत्र के लिए आन्दोलन के अगुवों के द्वारा हर क्षेत्र के लिए तर्क से बनाया जाता है | अधिकतर क्षेत्रीय अगुवों ने बड़े आंदोलनों की अगुवाई की होती है जिन्होंने अन्य क्षेत्र में नये कार्य को आरम्भ किया है और अन्य वैश्विक अगुवों के साथ वर्षों से संपर्क में है | क्षेत्रीय अगुवों के नेटवर्क में मजबूत संबंध और आपसी भरोसा होता है , जो समय के साथ बढ़ते रहता है |

हमारा 24:14 समुदाय वैश्विक रूप से एकसाथ कार्य करता है एक दुसरे को मदद करने के लिए | ज्ञान को , उपकरणों को , श्रोतों को , और अनुभवों को साझा करते है ताकि नेटवर्क तेजी से बढे | हमारे समुदाय की ताकत हमारे क्षेत्रों के द्वारा …..और अंततः आपके लिए बांटी गयी है |

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24:14 – कहानी

24:14 – कहानी

– क्रिस मेकब्राइड के द्वारा –

पुराने और साथ ही साथ नये खजाने 

वैश्विक कलीसिया के लिए 1990 का आरम्भिक सत्र अच्छा था | हमने कठिन परिश्रम किया और उत्साहजनक बातें हुयी | बीच की दिवार हटी और लोग यीशु के पास आने लगे |

परन्तु हम सबसे मुश्किल स्थानों में पहुच नहीं पा रहे थे | सम्पूर्ण लोगों की जाती में आत्माओं की पीढियां थी जो मसीह के बगैर अनंतकाल में प्रवेश कर रही थी | वैश्विक जनसंख्या तेजी से बढ़ रही थी , और कलीसिया सामंजस्य नहीं रख पा रही थी |

फिर कुछ अप्रत्याशित हुआ | बदलाव होना आरम्भ हुए जब सुसमाचार के दूतों ने  मसीह के वास्तविक आज्ञाओं को ताजा तरीकों से देखना आरम्भ किया | चौंका देने वाली खबर भारत से आयी | चीन से | दक्षिणपूर्व एशिया से | फिर अफ्रीका में : आसान, प्रस्तुत करने योग्य नमूने चेलों को बहुगुणित करने को आसान बना रहे थे | सशक्त चेलें यीशु की आज्ञा मान रहे थे , चेलें बना रहे थे , और नयी कलीसियाओं में इक्कठा हो रहे थे | इन कलीसियाओं का बहुगुणन खोएं हुओं मध्य में घातांकित था | ऐसी ही अविश्वसनीय बढ़त आरम्भ की कलीसिया में हुयी थी ( प्रेरितों के कार्य की किताब में दर्ज है )और सिर्फ कभी कभी कलीसिया के इतिहास में हुयी ( जैसे की आयरलैंड की पैट्रिक सेवकाई में वेस्लीयन आन्दोलन के आरम्भ में ) 

पुराणी बुद्धि से नयाँ खजाना उछला |

आत्मा फैलती है 

जैसे ही 2000 का उद्घाटन दशक उन्नत हुआ , अधिकाधिक ये कलीसिया रोपण के आदोंलन ( सीपीएम ) उभरे | ( सीपीएम ये छत्र शब्द है जो हम बहुगुणित कलीसियाओं में से बहुगुणित चेलों के आन्दोलन को वर्णन करने के लिए इस्तेमाल करते है ) 2007 तक , मिसिओलोजिस्ट 30 से भी ज्यादा सीपीएम की खोज में थे | 2010 में , वे 60 से भी ज्यादा की संख्या में थी , उनमे से अधिकतर एक दुसरे से पुर्णतः स्वतंत्र होकर आरम्भ किये थे | फिर संख्या 100 तक बढ़ी | जबकि अधिकतर आन्दोलन टिके रहे और कुछ खत्म हो गए , कार्यकर्त्ता बहुगुणित करनेवाले आंदोलनों का पीछा करते रहे खोएं हुओं तक पहुचने के लिए निरंतर सीखते रहे और संख्या में बढ़ते रहे | 

जैसे आन्दोलन संख्याओं में बढ़ता गया और प्रभाव में फैलता गया , कई अगुवों ने जाना की ये आत्मा की हवा कलीसिया रोपण आन्दोलन के ऊपर में फूंकी जा रही है | करोडो नये विश्वासी राज्य में प्रवेश कर रहे थे | ये पाल को डालने का समय था | 

एक समुदाय का जन्म हुआ 

2017 में , 24:14 का जन्म हुआ जिसमे दो अंतरराष्ट्रिय सम्मेलन हुए जहां वैश्विक अगुवे इक्कठा हुए थे मिशन संस्थाओं , कलीसियाओं से , नेटवर्क्स से आन्दोलन समर्पित था की सीपीएम के द्वारा खोएं हुओं तक पहुचने के लिए  | हम एक आसान प्रश्न के गुत्थी में थे : 

“राज्य के आन्दोलन को आरम्भ करने के लिए प्रार्थना और एक साथ कार्य करने के लिए क्या करना होगा की हम हमारी पीढ़ी में न पहुचे हुए स्थान और लोगों तक पहुच सके ? ”

पवित्रआत्मा ने 24:14 सम्मेलन के सहभागियों को कायल किया की नम्रतापूर्वक एक होकर प्रयास करने का पीछा करे ताकि न पहुचे हुओं को शामिल कर सके –विशेषतः कलीसिया रोपण आन्दोलन के द्वारा 2025 तक आवश्यक त्याग के साथ | परिणाम स्वरुप , हमने समान विचार के संस्थाओं , कलीसियाओं और विश्वासियों का एक वैश्विक गठबंधन शुरू किया – जिसे 24:14 के रूप में जानते है – ताकि परमेश्वरीय दर्शन को पूरा होता हुआ देखे |

एकसाथ निर्माण करे 

2017 से , हम उस दर्शन को एकसाथ तेज कर रहे है : हर एक लोग हर एक स्थानों में विश्वासियों के समुदायों के साथ यीशु मसीह के चेलों को बहुगुणित करने पर केन्द्रित है कलीसिया रोपण आन्दोलन में | हम देखते और कार्य करते है की बीज अच्छी भूमिं पर गिरे और फसल के रूप में बहुगुणित हो जो राजा के योग्य बन सके |

24:14 एक खुला सहयोगी समुदाय है जो कलीसिया रोपण आन्दोलन के उत्प्रेरक और सहयोगी की सेवा करते है | हम किसी संस्था का नाम ऊँचा नहीं उठा रहे है ; हम एकता के सहयोग में कार्य करते है एकमात्र यीशु की सेवा के लिए | 

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महान आज्ञा को पूरा करने में क्या लगेगा?

महान आज्ञा को पूरा करने में क्या लगेगा?

– स्टेन पार्क्स –

अपने चेलों को अंतिम निर्देश देते हुए (मत्ती 28:18-20), यीशु ने अपने सभी चेलों के लिए एक अद्भुत योजना की नींव रखी – तब के और अब के दोनों के लिए|

हम उस नाम में जाते है जिसमे सारा अधिकार है – स्वर्ग में  और पृथ्वी पर का | पवित्र आत्मा की सामर्थ्य को प्राप्त कर हम जाते है –  हमारे यरूशलेम, यहूदिया, सामरिया (निकट के “शत्रु”) और संसार के छोर तक के लोगों के बीच में | यीशु हमें सब जातियों के लोगों को चेला बनाने, उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा देने और उसकी सब आज्ञाओं का मानने की शिक्षा को दिया  है | और वह सदैव हमारे साथ है|      

महान आज्ञा पूरा करने में क्या लगेगा? “बचे हुए कार्य ” को समझने के लिए, हम इन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं “न पहुँचे हुए” “सुसमाचार न सुनाये गए,” “शामिल न किए गए” और “कम पहुँचे हुए|”

अधिकतर हम  इन शब्दों का इस्तेमाल आतंरिक परिवर्तन के तौर पर करते हैं | यह थोडा  खतरनाक हो सकता है, क्योंकि उनका अर्थ एक ही नहीं है , और जब हम उनका इस्तेमाल करते हैं तो हमारे कहने का अर्थ भी एक ही नहीं होता है|     

इसके कुछ समय बाद  “न पहुँचे”  यह शब्द बहुत ही प्रसिद्ध हो गया जब  शिकागो में मिस्सियोलोजिस्टों की “न पहुँचे हुए” लोगों पर एक सभा हुई जहाँ इस शब्द को मुलत: परिभाषित किया गया | इसे  परिभाषित किया गया , “लोगों का एक समूह जहाँ कलीसिया का अभाव है जो सीमाओं तक समूह को सुसमाचार सूना सके  बगैर संस्कृति के पार की सहायता के |”

“सुसमाचार न सुनाये गए” शब्द सामान्यतः उपयोग में था , और इसे  वर्ल्ड क्रिश्चियन इनसाइक्लोपीडिया  में परिभाषित किया गया है गणितीय समीकरण के रूप में  जिसमें लोगों के समूह की संख्या का अनुमान लगाया जाता है जिनके पास उनके जीवन भर में कम से कम एक बार सुसमाचार सुनने का मौका हो | यह उन लोगों की संख्या की मात्रा है जिनके पास सुसमाचार सुनने का मौका हो| उदाहरण के लिए एक समूह को  30% सुसमाचार सुनाया गया हो , इसका अर्थ है कि खोज करने वाले इस बात का अनुमान लगाते हैं कि 30%  लोगों ने सुसमाचार सुना है और 70% अभी तक नहीं सुने हैं | यह स्थानीय कलीसिया के गुणवत्ता या उसके स्वंय से  कार्य समाप्त करने की क्षमता  का कोई कथन नहीं है |

फिनिशिंग द टास्क  के द्वारा “शामिल न किए गए”  बनाया गया था  और लोगों के समूह के रूप में परिभाषित किया गया जिसके पास कलीसिया रोपण के  रणनीति दल का अभाव हो | यदि कुछ लाखों  लोगों के समूह के पास  दो या तीन लोगों का समूह हो जिनके पास “शामिल होना”  कलीसिया रोपण की रणनीति के साथ जुड़ा हो , तो यह “शामिल है” (परन्तु निश्चय ही अयोग्य है)| फिनिशिंग द टास्क शामिल न किए गए लोगों की सूची बनाये रखती है, जो दूसरे सूचियों से ली जाती है|  

“कम पहुँचे हुए” एक सामान्य शब्द है जो बचे हुए कार्य का मूल है | इसमें कोई विशेष परिभाषा नहीं

है, और अधिकतर जब किसी विशेष परिभाषा की मांग न होने पर इसे इस्तेमाल किया जाता है |

कार्य क्या है?

24:14 लक्ष्य  पीढ़ियों का भाग है जो महान आज्ञा को पूरा करते हैं | और हम महान आज्ञा को बेहतर रीती से पूरा करने की सोच रखते है  (हर समूह के लोगों से चेलों को बनाना) हर लोगों और स्थानों में राज्य के आन्दोलन के द्वारा |  

ये सभी शब्द- “न पहुँचे हुए” “सुसमाचार न सुनाये गए,” “शामिल न किए गए” और “कम पहुँचे हुए,” कई तरह से मददगार हैं | फिर भी ये भ्रम में डाल सकते है  और अनुत्पादक भी हो सकते हैं , इस आधार पर की ये कैसे इस्तेमाल किये गए है |    

हम देखना चाहते हैं कि हर कोई सुसमाचार सुना हो , लेकिन केवल सुसमाचार ही न सुना हो | दूसरे शब्दों में, यह पर्याप्त नहीं है कि हर कोई सुसमाचार मात्र  सुना हो | हम जानते हैं कि “हर एक जाति, कुल, लोग, और भाषाओं में से चेले बनाए जायेंगे ” (प्रकाशितवाक्य 7:9 ) | 

हम देखना चाहते हैं कि हर लोगों का समूह पहुँचाया गया हो – और एक मजबूत कलीसिया बनी हो  जो अपने लोगों को सुसमाचार सुना सके | परन्तु हम सिर्फ इतना ही नहीं चाहते हैं| जोशुआ प्रोजेक्ट कहता है एक पहुँचे हुए समूह में 2%  इवैंजेलिकल ईसाई हैं| इसका अर्थ है उन्होंने  अनुमान लगाया की  वो 2%  बचे हुए 98% को सुसमाचार सुनायेंगे| यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है, परन्तु हम इससे संतुष्ट नहीं हैं यदि सिर्फ 2% लोग ही  यीशु के अनुयायी बने |       

हम देखना चाहते हैं कि प्रत्येक समूह इसमें शामिल है, परन्तु केवल शामिल ही न हो | क्या आप चाहते हो कि आपका शहर जिसमे पाँच या दस लाख लोग है और उसमे सिर्फ दो लोग ही सुसमाचार की सेवा का कार्य करे?    

महान आज्ञा की मूल भाषा केन्द्रीय आज्ञा के  इन वचनों स्पष्ट करती है , चेले  बनाओ  (माथेतयूसते)| न केवल व्यक्तिगत चेले, परन्तु जाती के चेले बनाना, एथ्ने – सम्पूर्ण जाति के समूहों के चेले बनाना | दूसरी क्रियायें (“जाओ” “बपतिस्मा दो” “सिखाओ”) मुख्य आज्ञा को मदद करती हैं – की सारे जातियों को चेला बनाओ|

यूनानी शब्द एथ्नोस (एथ्ने  एक वचनी) को इस तरह परिभाषित किया जाता है, “व्यक्तियों का एक समूह जो कुटुम्बियों, संस्कृति और सामान्य परम्पराओं, देश, और लोगों के द्धारा जुड़ा है | प्रकाशितवाक्य 7:9 एथ्ने (“देशों”) के चित्र को प्रगट करता  है जिन तक पहुँचना है, जिसमें और तीन वर्णनात्मक शब्दों को जोड़ सकते हैं: जाति, लोग, और भाषा – विभिन्न समूह सामान्य परिचय के साथ |  

लुसान 1982 लोगों के समूह की परिभाषा कहती है: “सुसमाचार सुनाने के उद्धेश्यों के लिए, लोगों का समूह एक  बड़ा समूह है जिसमें सुसमाचार बिना समझ या स्वीकृति के उत्साहित करनेवाले बाधाओं के रूप में फ़ैल सकता है कलीसिया रोपण आन्दोलन के रूप में  |” 

हम एक सम्पूर्ण देश, जाति, लोगों एवं भाषा के लोगों को चेला कैसे बना सकते हैं? 

इसका एक उदाहरण हम प्रेरितों के काम 19:10 में देखते हैं, जो कहता है “दो वर्ष तक यही होता रहा, यहाँ तक कि आसिया (15 मिलियन लोग) के रहनेवाले क्या यहूदी क्या यूनानी सब ने प्रभु का वचन सुन लिया|” रोमियों 15 (पद 19-23) में, पौलुस कहता है कि यरूशलेम से लेकर इल्लिरिकुम तक ऐसा कोई स्थान नहीं बचा जहाँ उसका शुरू किया गया काम नहीं पहुँचा|    

इसलिये महान आज्ञा को पूरा करने में क्या लगेगा? निश्चय रूप से परमेश्वर ही जानता है की महान आज्ञा अंततः कब पूरी होगी |  फिर प्रत्येक जाति के लोगों को चेला बनाने का लक्ष्य तय रहेगा, जिसके परिणामस्वरूप कलिसियायें बनेगी | चेले परमेश्वर के राज्य को जिए – कलीसिया के बाहर तथा अन्दर  – उनके समुदायों को रूपांतरित करें और निरंतर उसके राज्य में और अधिक लोगों को लेकर आये|

राज्य के आन्दोलन में शामिल होना

इसलिये 24:14 बनाने वाले प्रतिबद्ध लोगों ने राज्य के आन्दोलन में शामिल होने के  समर्पण पर ध्यान दिया है | हम इस बात को पहचानते हैं कि केवल चेलों, कलीसियाओं और अगुवों को बहुगुणित करने वाला  आन्दोलन ही  सम्पूर्ण समुदायों, भाषा के समूहों, और देशों को चेला बन सकता है |     

बहुत बार हम मिशंस में “ मै क्या कर सकता हु ” सिर्फ यही पूछते है : इसके बजाए  हमे पूछना चाहिए “मैं क्या कर सकता हूँ?”  की महान आज्ञा में हमारी भूमिका को पूरा कर सके | 

हम सिर्फ यह नहीं कह सकते है , “मैं जाऊँगा और कुछ लोगों को प्रभु के लिए जितने की कोशिश करूँगा  और  कुछ कलीसियाओं को शुरू करूँगा |” हमें पूछना है: “ हमे इस एक एथ्नोस  या इन बहुगुणित एथ्ने को चेला बनाने में क्या लगेगा?”

कई देशों के चुनौतीपूर्ण न पहुँचे हुए क्षेत्रों में, एक मिशन का दल कई स्थानों में सेवा कर करती है  और उन्होंने देखा कि तीन वर्षों में 220 कलिसियायें शुरू की गई हैं| यह बहुत ही अच्छा है, विशेषकर उनके कठिन एवं कभी –कभी शत्रुतापूर्ण संदर्भ में | परन्तु इस दल के पास सम्पूर्ण क्षेत्र को चेला बनाने का दर्शन था|   

उनका प्रश्न था: “हमारी पीढ़ी में हमारे इस क्षेत्र को चेला बनाने में क्या लगेगा?” उत्तर था एक ठोस शुरुआत (एक शुरुआत – न कि अंत) के लिए 10,000 कलिसियाओं की आवश्यकता होगी| इसलिये तीन वर्षों में 220 कलिसियायें पर्याप्त नहीं हैं|   

परमेश्वर ने उन्हें दिखाया कि उनके क्षेत्र में पहुँचने के लिए पुन: उत्पादन करनेवाली कलीसियाओं की  कई  बहुगुणित शाखाओं की आवश्यकता है | वे सब कुछ परिवर्तन करना चाहते थे | जब परमेश्वर ने उनके पास CPM प्रशिक्षकों को भेजा, तो उन्होंने पवित्रशास्त्र में से ढूंढा और प्रार्थना किया एवं कुछ मौलिक परिवर्तन किये | जिससे आज तक , परमेश्वर ने उस क्षेत्र में 7,000+ कलीसियाओं को शुरू किया|   

एशिया के  एक पासबान ने  14 वर्षों में 12  कलीसियाओं का रोपण किया| यह अच्छा था, परन्तु यह उसके क्षेत्र में खोये हुओं के स्तर में परिवर्तन नहीं कर पाया | परमेश्वर ने उसे और उसके साथ परिश्रम करनेवालों को सम्पूर्ण उत्तर भारत तक पहुँचने के  दर्शन का हिस्सा बनाया  था | उन्होंने पारंपरिक तरीकों को छोड़ बाइबिल संबंधित रणनीतियों को सिखने का कठिन परिश्रम आरम्भ किया | आज 36,000 कलिसियायें शुरू की गई हैं| और परमेश्वर ने उनसे जो करने को कहा था यह उसका एक आरम्भ मात्र था |      

न पहुँचे संसार के एक अन्य भाग में परमेश्वर ने झरने के आन्दोलन  को एक भाषा के समूह से सात अन्य भाषायी समूहों में पाँच विशाल शहरों में शुरू किया | उन्होंने 25 वर्षों में 10-13 मिलियन लोगों को बपतिस्मा लेते देखा है , परन्तु यह उनका लक्ष्य नहीं था| जब यह पूछा गया कि इन लाखों नये विश्वासियों के बारे में वह क्या सोचते है, उनके एक अगुवे ने कहा, “मैं उन उद्धार पाए हुओं पर ध्यान नहीं देता | मेरा ध्यान उन लोगों पर है जिन तक पहुँचने में हम असफल हुए हैं | करोडो  अब भी अन्धकार में रह रहे हैं क्योंकि हमने वह नहीं किया जो हमें करने की आवश्यकता है |”       

इन आंदोलनों का एक चिन्ह यह है कि एक व्यक्ति या लोगों का एक दल परमेश्वरीय दर्शन को स्वीकार करता है | यह देखते हुए की  देशों का सम्पूर्ण क्षेत्र परमेश्वर के राज्य से भर गया है | सम्पूर्ण न पहुँचे हुए लोगों के समूह को देखना – आठ मिलियन, या 14 मिलियन या तीन मिलियन तक ही पहुँच पाये हैं, ऐसे पहुचे की हर एक के पास सुसमाचार के लिए प्रतिउत्तर हो | वे पूछते हैं: “क्या होना चाहिए ?” न कि “हम क्या कर सकते है ?” परिणामस्वरूप, वे परमेश्वर के तरीके  में उचित बैठते हैं और उसकी सामर्थ्य से भर जाते हैं | वे पुन: उत्पन्न करनेवाली कलीसियाओं का हिस्सा बनते है जो उनके समूहों को चेला बनाने तथा रूपांतरित करना शुरू कर देते है |   

24:14 आन्दोलन का  प्रारंभिक लक्ष्य न पहुँचे हुए लोगों एवं स्थान में शामिल होना है, न कि समाप्ति के लकीर तक पहुँचना है | यह केवल एक शुरुआत है प्रत्येक लोग एवं स्थान के लिए  (उदाहरण के लिए, उस स्थान में लोगों का समूह)| हम प्रत्येक समूह में काम को पूरा नहीं कर सकते हैं जब तक कि हर समूह में कार्य को शुरू नहीं किया जाए |

परमेश्वर के राज्य के आन्दोलन को हर लोगों और स्थान में देखने के लिए , हम केवल रणनीतियों और प्रणालीयों के चुनाव पर आश्रित नहीं रह सकते है  | आरंभिक कलीसिया को परमेश्वर ने जो सामर्थ दि थी उसी को पाने की तैयारी हमे रखनी चाहिए | उन आरंभिक वर्षों में सुसमाचार तेजी से फैला जबतक कोई न पहुचा हुआ स्थान उन आरंभिक क्षेत्रों न छुटा हो |    

 

 

स्टेन पार्क पीएचडी 24:14 गठबंधन (सुविधा टीम), परे (वीपी वैश्विक रणनीतियों), और Ethne (नेतृत्व टीम) में कार्य करता है ।  वह विश्व स्तर पर सीपीएम की एक किस्म के लिए एक ट्रेनर और कोच है और रहते है और १९९४ के बाद से पहुंच के बीच सेवा की ।

यह सामग्री पहली बार पृष्ठ 139-144, पुस्तक 24:14 के १४७ पर छपी-सभी लोगों के लिए एक गवाही, 24:14 से या अमेज़न से उपलब्ध है ।

{1) अगले 7 पैराग्राफ कुछ अंश और https://justinlong.org/2015/01/unreached-is-not-unevangelized से संपादित कर रहे हैं-
आईएस-नॉट-अनंगेज/। इन शर्तों के बारे में अधिक जानकारी के लिए यह लेख देखें।
(2) जैसा कि “24:14 विजन” में वर्णित है: 24:14 – सभी लोगों के लिए एक प्रमाण, पीपी 2-3।
(3) नए नियम और अन्य प्रारंभिक ईसाई साहित्य, तीसरा संस्करण, 2000 के एक ग्रीक-अंग्रेजी शब्दकोश।   संशोधित और
फ्रेडरिक विलियम डैनकर द्वारा संपादित, वाल्टर बॉयर और पिछले अंग्रेजी संस्करणों के आधार पर डब्ल्यूएफ अर्न्ड, एफडब्ल्यू गिरिच,
और F.W. Danker । शिकागो और लंदन: शिकागो प्रेस विश्वविद्यालय, पी २७६ ।
(4) इस बड़ी संख्या को गिनना और दस्तावेज़ करना आसान नहीं है, इस प्रकार अनुमानित सीमा।